यह छोटी सी व्याख्या है, मन से निकली कविता बनकर, पर व्यक्तित्व तुम्हारा है सागर, नहीं रख सकते पात्... यह छोटी सी व्याख्या है, मन से निकली कविता बनकर, पर व्यक्तित्व तुम्हारा है सागर...
फिर अधिकतर शिल्प आगे बढ़ जाता है, लेकिन शिल्पकार नेपथ्य में रह जाता है। फिर अधिकतर शिल्प आगे बढ़ जाता है, लेकिन शिल्पकार नेपथ्य में रह जाता है।
सबसे सच्ची प्रीति लिखूंगा माँ पर कोई गीत लिखूंगा । सबसे सच्ची प्रीति लिखूंगा माँ पर कोई गीत लिखूंगा ।
हृदय-वाटिका पुष्पित होती, महके मन बनकर मकरंद। हृदय-वाटिका पुष्पित होती, महके मन बनकर मकरंद।
मानता है ये हृदय भी शिल्प रखना है जड़ाऊ। मानता है ये हृदय भी शिल्प रखना है जड़ाऊ।
जब भी उसकी छांव में सोने का प्रयास करता वो अपने कंधों पे बैठी कोयल से लोरी सुनवा देता जब भी उसकी छांव में सोने का प्रयास करता वो अपने कंधों पे बैठी कोयल से ...