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Paramjeet singh

Others

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Paramjeet singh

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थकी लेखनी

थकी लेखनी

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रेंगती भाषा स्मरण से

राह लंबी है पकाऊ

शब्द कोरे कागजों पे

लग रहे हैं सब उबाऊ।


बिंब नव दिखते नहीं हैं

शीर्षकों की है लड़ाई

सिर्फ लिखना धर्म है अब

मारना मन है बड़ाई

मानता है ये हृदय भी

शिल्प रखना है जड़ाऊ।


रूठता मासूम बचपन

जीत पाने पर अड़ा है

मापदंडों पर सही जो

कर कलम थामें खड़ा है

रूँधती स्याही सिसकती

आँख सूखी है दिखाऊ।


एक कोशिश बंध पर है

नव नवेली रीत लिखना

युद्ध सा आभास होता

चित्र पर नवगीत लिखना

लेखनी भी ऊँघती सी

मौन की यात्रा थकाऊँ।।



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