मन की बातें
मन की बातें
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अब हर उस बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती
जो मुझे चिंतित करती है सीख रही हूं धीरे-धीरे
चोट दी है जिन्होंने कभी
उन्हें चोट नहीं देनी है
भिड़ जाने से अच्छा होता है
अलग हो जाने में
प्रतिक्रिया देने में जो ऊर्जा खर्च होती है
खालीपन का वो एहसास कराती
तन मन में
सीख रही हूं धीरे-धीरे
ऊर्जा को अपने शौक में
खर्च करने की
जान गई हूं अब तो
खुद के साथ जब होती मुलाकातें
बेवजह सी लगती भीड़ की बातें
जवाब न देना स्वीकार है
कि अब उससे ऊपर उठ जाना
बेहतर जान पड़ता है।