मेरी कलम ,मेरी संगिनी... जिसने मुझे मेरे जज़्बातों को बयां करने का जज़्बा दिया है...
ऐसे में वर्चुअल क्लासेज़ की व्यवस्था की हकीकत भी सामने आती है। ऐसे में वर्चुअल क्लासेज़ की व्यवस्था की हकीकत भी सामने आती है।
मेहनत की गूँज देखकर, फिर विचलित हुए मुट्ठी भर लोग मेहनत की गूँज देखकर, फिर विचलित हुए मुट्ठी भर लोग
काश ! उन्होंने भी धैर्य से संतुलन बनाया होता तो आज सब साथ होते ! काश ! उन्होंने भी धैर्य से संतुलन बनाया होता तो आज सब साथ होते !