संतुलन
संतुलन


हर तरफ़ अफ़रा -तफ़री का माहौल था, अचानक उठे तूफ़ान की थपेड़ों में जहाज़ हिचकोले खा रहा था। पूरा वातावरण बेचैनी और खौफ़ में सिमट गया था।
तभी जहाज़ के कप्तान ने आकर कहा – यह बहुत मुश्किल का समय है, मगर धैर्य से स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है। आप सब घबराएँ नहीं, मैं जहाज़ को किनारे तक ले जाने का हर संभव प्रयास करूँगा।
अरे, यहाँ मरने से तो अच्छा है, हम तैरकर किनारे पर चले जाएँ।घबराहट में कुछ लोग कप्तान को बुरा- भला कहते हुए दूसरों को उकसा रहे थे।
लहरों की गति तीव्र हो रही थी।
लोगों ने उन्हें समझाया, हौसला दिलाया,
तूफ़ान में फंसे दूसरे जहाज़ों का मंज़र भी दिखलाया, मगर उन्हें कुछ समझ नहीं आया।
तभी, कुछ लोगों ने समुद्र में छलांग लगा दी,
जहाज़ बुरी तरह डगमगाया
लोग गिर रहे थे ....मगर …एकाएक, धैर्य से साथ मिलकर उन्होंने संतुलन बनाया।
धीरे- धीरे सब संभलने लगा
तूफ़ान ने जहाज़ को ख़ूब हिलाया मगर उसका संतुलन न बिगाड़ पाया।
धीरे- धीरे जहाज़ किनारे पहुँच गया। सब ख़ुश थे मगर कुछ साथ छूट जाने का अफ़सोस भी था।
काश ! उन्होंने भी धैर्य से संतुलन बनाया होता तो आज सब साथ होते !