रिश्ते
रिश्ते


दूर से दिखती घर की शान बड़ी है
करीब से देखा वो रेत का घर है
मुश्किल से मिलता अब
शहर में इंसान है
यूं तो आसपास टोलियां बहुत है
अरमानों के ढेर पर बैठी हूं
पर वक्त की कमी है
खुश होने का अभिनय करते
देखा है कइयों को
पर परेशानों की लंबी कतार है
रिश्तो में वह अपनापन
अब दिखता कहां है
मुखौटों के पीछे चेहरों में
दरिंदे छिपे हैं
चासनी में डुबोई शब्दों में
मत उलझना तुम
हंस कर इसमें डुबोने वालों
की कमी नहीं है।