सफर जिंदगी का
सफर जिंदगी का
एक उम्र गुजर गई
तमाशो के साथ जीकर
अपनों को ढूंढती रही
अपनों के भीड़ में
दिखते आसपास थे सब
पर दूर रहे सभी
दूरियों की इस खाई में
जिंदगी मैने गुजार दी
कौन था कब करीब
मतलब के इन रिश्तों बीच
मुसाफिर बन चलती रही
रिश्तो में उलझने बहुत बढ़ी
जिंदगी जीती रही पर शायद
रही वह उधार की
जीने की तमन्ना ने
वक्त को भी मात दी
छोटे छोटे सपनों ने
सफर को आसान बना दिया
बारी बारी पूरे होते गए सब सपने
मंजिल पास आती गई।
