दबाव..
दबाव..
चाहत है, गर , कुछ कर -गुज़रने की
तो ,यह भाव निखार देता है
दबाव, बाहरी हो या अंदरूनी, दायरों में ही सही
बीज और मिट्टी की जंग में ,कोंपल खिला देता है
हथेली पर रखी धूप की तरह
तुझमें ,सूरज- सा एहसास जगा देता है
अगर, बन जाए प्रश्न वजूद का
पत्थर से प्रतिमा बना देता है
भरोसा है, तुम्हें अपने -आप पर
तो ,यह हीरे- सा तराश देता है
बिना दबाव के कुछ नहीं है ज़िंदगी
आत्मा पर लग गया तो जीने का मक़सद जगा देता है।