paramjit kaur

Inspirational

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paramjit kaur

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हाँ ये वक़्त मंथन का है !

हाँ ये वक़्त मंथन का है !

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हालात का ये चक्र

बहुत सी परतें दिखा रहा है !

कुछ शिकार हैं !

और कुछ शिकारी ! 

पिस रहा है प्रहरी !


कहीं गरीबी

लाचार कर रही है !

ओछी मानसिकता भी

तो द्वार पर खड़ी है !


बात तो सम्पूर्ण सुरक्षा की है, 

फिर क्यों सब को

अपनी-अपनी पड़ी है ?

हाँ ये वक़्त मंथन का है !

क्या सोच है तुम्हारी ? 


धर्म, राजनीति और भ्रष्टाचार के

व्यवहार से निकल कर देख, 

जो गड्ढा खोद रहा है,

कल उसी में गिरने की है तेरी बारी ! 


ख़ुद को देश का नागरिक

कह कर सुविधाएँ भी चाहते हो। 

मगर इस संवेदनशील समय में

नियमों की धज्जियाँ भी उड़ाते हो। 

हाँ ये वक़्त मंथन का है !


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