हाँ ये वक़्त मंथन का है !
हाँ ये वक़्त मंथन का है !
हालात का ये चक्र
बहुत सी परतें दिखा रहा है !
कुछ शिकार हैं !
और कुछ शिकारी !
पिस रहा है प्रहरी !
कहीं गरीबी
लाचार कर रही है !
ओछी मानसिकता भी
तो द्वार पर खड़ी है !
बात तो सम्पूर्ण सुरक्षा की है,
फिर क्यों सब को
अपनी-अपनी पड़ी है ?
हाँ ये वक़्त मंथन का है !
क्या सोच है तुम्हारी ?
धर्म, राजनीति और भ्रष्टाचार के
व्यवहार से निकल कर देख,
जो गड्ढा खोद रहा है,
कल उसी में गिरने की है तेरी बारी !
ख़ुद को देश का नागरिक
कह कर सुविधाएँ भी चाहते हो।
मगर इस संवेदनशील समय में
नियमों की धज्जियाँ भी उड़ाते हो।
हाँ ये वक़्त मंथन का है !