STORYMIRROR

paramjit kaur

Abstract Inspirational

3  

paramjit kaur

Abstract Inspirational

इंसानों की भीड़ में ,इंसान!

इंसानों की भीड़ में ,इंसान!

1 min
134

अक्सर, उलझ जाती हूँ,

इंसानियत के इस वेश को देखकर!

पारदर्शिता के लिबास में,

बाहरी चकाचौंध,

अंदर, संकुचित मानसिकता का

गहन अंधकार!


कुछ आहत हैं, मगर मजबूर हैं,

कहीं मजबूरी, दिखावा है!

सुन सकते हो, तो सुनो...!


हर वर्ग में गूँजता ' मैं' का अट्टहास!

काश! नाप सकती इस छल की गहराई को,

मगर, भीतर बहुत शोर है,

बहुत कुछ कहना चाहती हूँ।

परिवर्तन के प्रयास में उलझती, संभलती,

खोजती हूं,

इंसानों की भीड़ में, इंसान!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract