मेरी कलम ,मेरी संगिनी... जिसने मुझे मेरे जज़्बातों को बयां करने का जज़्बा दिया है...
मेरे जख़्मों पर अब क्यों रोती है ? सहना तो तूने ही सिखाया था। मेरे जख़्मों पर अब क्यों रोती है ? सहना तो तूने ही सिखाया था।
सर पर छत नहीं है जिनके, आज तृप्त लग रहे हैं... ! सर पर छत नहीं है जिनके, आज तृप्त लग रहे हैं... !
चाहत है, गर , कुछ कर -गुज़रने की तो ,यह भाव निखार देता है । चाहत है, गर , कुछ कर -गुज़रने की तो ,यह भाव निखार देता है ।
वह पुरुष ही नहीं ,औरत से भी तो छली गई ! वह पुरुष ही नहीं ,औरत से भी तो छली गई !
क्योंकि हम असमर्थ हैं, सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए ! क्योंकि हम असमर्थ हैं, सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए !
स्वतंत्रता के मद में, वह भी तो बहुत इतराया था, स्वतंत्रता के मद में, वह भी तो बहुत इतराया था,
अंदर, संकुचित मानसिकता का गहन अंधकार अंदर, संकुचित मानसिकता का गहन अंधकार
जज़्बातों की स्याही में शब्दों का प्रवाह है , मन के अंदर , वही पानी के बुलबुले से शब्द। जज़्बातों की स्याही में शब्दों का प्रवाह है , मन के अंदर , वही पानी के बुलबुले...
नियमों की धज्जियाँ भी उड़ाते हो। हाँ ये वक़्त मंथन का है ! नियमों की धज्जियाँ भी उड़ाते हो। हाँ ये वक़्त मंथन का है !
ऐसे में क्या हमें अभी भी इस मिट्टी की शक्ति का एहसास नहीं है ऐसे में क्या हमें अभी भी इस मिट्टी की शक्ति का एहसास नहीं है