न्याय के लिए मरना ज़रूरी !
न्याय के लिए मरना ज़रूरी !


यह कौन - सा विकास हो रहा है ?
जहाँ,गलत को सही,
और सही को दबा देने का प्रयास हो रहा है !
वे कहते हैं,साक्षरता बढ़ रही है।
समाज की कुंठित सोच तो आज भी पनप रही है।
औरत आज भी है,मात्र हाड़ -माँस की कहानी,
शरीर की भूख मिटा,
जिसे रौंद कर मिटा देने में है आसानी !
हाँ,यह लोकतंत्र है !
अंधा क़ानून सबूत माँगता है।
अब कुछ दिन चर्चाओं में लाश को नोचेंगे गिद्ध,
मुद्दा बना, आरोप -प्रत्यारोप भी होंगे।
इसलिएआनन -फानन में नियम -कानून की धज्जियाँ उड़ा,
संवेदनाओं की चित
ा जला दी गई।
शायद …अब,न्याय मिलेगा !
क्योंकि गूंगे और बहरे लोकतंत्र में,
न्याय के लिए मरना जरूरी है !
मगर बेटियों को सुरक्षित समाज दे पाना,
आज भी इस के लिए गैर-ज़रूरी है।
कुछ दिन रोष प्रकट कर,
सब निर्लिप्तता से आगे बढ़ जाएँगे,
मगर सक्रिय रहेंगे,दरिंदे !
एक औरत के हाथ से,
अपनी पेट की भूख मिटा,
लपलपाती जीभ से तैयार,
एक नए हाड़- माँस के शिकार के लिए !
और,फिर वही चक्र और मुर्दा शांति !
क्योंकि हम असमर्थ हैं,
सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए !