स्वयं
स्वयं
पवित्र वही है
जो सच्चा है
लेकिन वो
किसी के लिए
अर्थपूर्ण हो
यह ज़रूरी नही
वो निरर्थक भी
हो सकता है
वो वेदना जो
भावनाओं को कुंठित कर
योजनाओं को आकार
देती है वही अक्षम को
सक्षम कर सकती है
स्वार्थ सिद्धि नही यह
यह वो उद्देश्य बन गया है
जो स्वयं को ढूंढना है
स्वयं के लिए ही
किंतु स्वयं से परे होकर....।