भोर - सी आस
भोर - सी आस
इस धूप की तपिश का मुझसे ज़िक्र ना कराओ
रौशनी मिल गयी है, क्या ये कम बात है !
आँधियों के दामन में सिर्फ़ धूल क्यों दिखी ?
बादल पिरो रही हैं, क्या ये कम बात है !
संझा ने आज फ़िर ओढ़ी है रात की चादर
मीठी नींद दे गयी है, क्या ये कम बात है !
रास्तों की चुभन को समेट लो तक़दीर में
राही बना गयी हैं, क्या ये कम बात है !
गीता - क़ुरान में मज़हब ना ढूँढ़ मेरे भाई
सद्गुण सिखा गयी हैं, क्या ये कम बात है !
नदी से सीख ले तू ख़ुद का रास्ता बनाना
इक लक्ष्य दे गयी है, क्या ये कम बात है !
वो विशाल वृक्ष है ख़ुद के ही बल खड़ा हुआ
नाउम्मीद है वो तुझसे, क्या ये कम बात है !
हिमालय की हवाओं में जब आती है सर्द सिहरन
सिमटना सिखा गयी हैं, क्या ये कम बात है !
चलो लौट चलें फ़िर सब लालटेन के उस दौर में
इक लौ जला गयी थी, क्या ये कम बात है !