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नीरजा मेहता

Inspirational

4  

नीरजा मेहता

Inspirational

कुंभकर्ण

कुंभकर्ण

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तीन भागों में पढ़िए मेरी कविता (कोरोनकाल सृजन)


पहला भाग---

काश मैं कुंभकर्ण होती


यूँ ही  बैठे-बैठे आया  मुझे ध्यान

काश, मिल जाता  ऐसा  वरदान।


काश ! मैं भी कुंभकर्ण सी होती

छः माह तक गहरी नींद सोई होती।


बीत जाता मुआ ये कोरोना काल

भय से न होता मेरा यूँ बुरा हाल।


मुख पट्टी लगा न  बाहर निकलती

साफ हाथों को भी, फिर से न धोती।


करना है सैनिटाइज़, घर आया सामान

आए हैं बाहर से, अब करना स्नान।


न  रखनी पड़ती  दो गज  की दूरी

दूर रहना अपनों से, न होती मज़बूरी।


न दिखता मुझे भयानक सा मंज़र 

रहती  बेखबर,  सुरक्षित  मैं  अंदर।


मिलती न  झूठी-सच्ची  बुरी  ख़बरें

सपनों में लिख रही होती चंद गज़लें।


लोग उठाते बजाकर ढोल और ताली

सज जाती आगे व्यंजनों की थाली।


लोगों से सुनती, कोरोना के किस्से

विदेशी महामारी आई भारत के हिस्से।


दूर हुई ये विपदा, खुश होता जिया

जागकर मैं जलाती मंदिर में दीया।

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दूसरा भाग---

जज़्बा कुंभकर्ण सा


होती कुंभकर्ण, ये कहना एक बहाना है

असल में सोए हुओं को नींद से जगाना है।


खतरे में है देश, उठो मेरे कवियों जागो

कविता सब अपनी अब वीर रस से पागो।


छुप कर किया था वार, लगा सरिया में तार

उन्हीं कीलों को करना है अब आर-पार।


हुए थे  शहीद निहत्थे सीमा पर जवान

रखना तुम  याद,  वो घाटी है गलवान।


कुंभकर्ण सी है ताकत और बुद्धि अपार

तो आओ मिलकर कर दें रिपु का संहार।


छोड़ो सियासत ये  है देश  का  सवाल

ये गद्दारों का है काम, न करो अभी बवाल।


जानता था कुंभकर्ण, नहीं बच पाऊँगा

सामने भगवान  हैं  नहीं  लड़  पाऊँगा।


बीस आँखों से भी रावण जो देख न पाया

पल भर में  कुंभकर्ण ने  देख चेताया।


पर देश की ख़ातिर उठ गया गहरी नींद से

भले ही हो गया अलग धड़ उसका शीश से।


यही जज़्बा चाहिए, यही हौसला चाहिए

बचा सकेंगे तभी देश, बस एकता चाहिए।


जिनका लूट गया सुहाग, बच्चे हो गए अनाथ

क़सम है हमको, देना है उस घात का प्रतिघात।


व्यर्थ  न जाये  माँ के  लाल की कुर्बानी

भूले न कभी दुनिया, याद रहे हमें ज़ुबानी।

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तीसरा भाग

अपवाद कुंभकर्ण सा


खुशकिस्मत था कुंभकर्ण रहा बेखबर

क्या चल रहा देश में, न थी उसे ख़बर।


बेसुध पड़ा हुआ वो दूर था प्रपंच से

भला हुआ जो छूट गया ऐसे रंगमंच से।


मिल जाये यदि कुकर्मियों को ऐसा अपवाद

सच कहती हूँ  हो जायेंगे  कम अपराध।


बच जायेंगी अस्मतें, रहेंगी सुरक्षित नारियाँ

सोते रहेंगे चोर, कम हो जायेंगी चोरियाँ।


दूर हो जायेंगे पाप, ज़ुल्म और भ्रष्टाचार

हर तरफ मिलेगा स्नेह, दया, सदाचार।


भाग्यवान था रावण, कुंभकर्ण सा भाई मिला

सच्चाई जानकर भी भाई को दगा न दिया।


नहीं है इन पापियों में कुंभकर्ण सा ईमान

दानव होकर भी मिला उसे देवों सा सम्मान।


भले ही दो जालिमों को कितने भी प्रलोभन

तब भी न देंगे कभी कुंभकर्ण सा वचन।


बुराई संग रहता है इनका ऐसा अनुषंग

चंदन संग सदा लिपटे रहते ज्यों भुजंग।


बचा लो देश को, मत झेलो दिल पर ज़ख्म

बस एक ही उपाय, कर दो नींद में ही भस्म।


न पाप देख होगा  छलनी दिल हमारा

मिट जायेगा भेद, क्या मेरा क्या तुम्हारा।


सब तरफ़ छा जायेगी ऐसी प्रेम, खुशहाली

आ जायेगा सतयुग, मनेगी रोज़ दीवाली।।


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