मैं तो एक बच्चे सी ही
मैं तो एक बच्चे सी ही
उम्र बीतने को आई लेकिन
मेरा बचपन अभी बीता कहां है
जब मैं बच्चा थी
कम उम्र की थी तो
वह था कम उम्र का बचपन
अब उम्र में बड़ी हूं लेकिन
यह है इस बड़ी उम्र का बचपन
दिल बच्चा ही नहीं रहा जिस पल तो
बस यह समझो कि जीवन खत्म हुआ
जीवन जीवन्त न रहकर
मर गया
आग लग गई जैसे इसके
फूलों के महकते उपवन में और
सारा गुलिस्तां जलकर राख हो गया
बागों के फूल जैसे सारे मुरझा गये
उन्हें डस लिया हो जैसे एक भयंकर आंधी के
अजगर ने
एक बच्चे सा जो दिल नहीं धड़का जिस दिन
उस पल यह दुनिया लगेगी वीरान
अकेलापन भर भरकर सतायेगा कि
अपनी जिन्दगी पर
अपने जिन्दा होने पर
रोना आयेगा
भगवान से प्रार्थना है कि
मैं तो एक बच्चे सी ही
एक फूल सी
खिलती रहूं
मुस्कुराती रहूं
हवाओं की लताओं संग
झूले झूलती रहूं
तितलियों सी, भंवरे सी
कलियों पर मंडराती
राग सुरीले एक कोयल सी कूकती
गाती रहूं
अपनी दुनिया में मगन रहूं
कौन क्या कर रहा है
क्या नहीं कर रहा
इसकी तनिक न चिन्ता करूं
संजीदा रहूं लेकिन अवसाद से न
घिर जाऊं
मेरा बचपन तो बेहद खुशगवार
था
काश यह मेरा जीवन आगे भी
ऐसे ही चलता रहे
मैं जीवन के मजे
एक सागर में उठती हिलोर
से ही
उठाती रहूं
हंसती रहूं
गाती रहूं
झूमती रहूं
मुस्कुराती रहूं
गुनगुनाती रहूं
जिसको बनना हो बड़ा तो बने
मैं तो अपनी आखिरी सांस तक
एक बच्चे सी ही बचपन के खेल
से खेलती ही सांसों की डोर
थामे रहूं
उसे आसमान में एक पतंग सा ही
उड़ाती रहूं और
मन ही मन में एक बच्चे सी ही
खिलखिलाकर हंसी के फव्वारे छोड़ती रहूं और
किलकारियों से अपने घर आंगन को
गुंजाती रहूं।
