आकाश की काली देह को आज न मैं चमकने दूंगी
आकाश की काली देह को आज न मैं चमकने दूंगी
रात में
आसमान के बदन पर जो
काली स्याही बिखरी है
मुझे उसे और अधिक बिखराना है
उसकी देह से लिपट जाना है और
उसके रंग को खुद में जज्ब करके
कहीं गहरे उसे आज की रात पाना है
चांद की चांदनी का प्रभाव
आज मैं न पड़ने दूंगी
उसके काले रंग के तन पर
मैं भी उसके काले रंग में रंगी
चांद के घर का दरवाजा बंद कर
उस पर कालिख पोत दूंगी
उसकी एक भी सुनहरी किरण
बाहर न आने दूंगी
आकाश की काली देह को
आज न मैं
एक क्षण के लिए भी चमकने
दूंगी
आज उसे नहाना होगा
मेरे रंग में और
मैं सराबोर हो जाऊंगी
सिर से पांव तक उसके रंग में
आज की रात कुछ ज्यादा
काली होगी
आज एक दूसरे के प्रेम के रंगों में
घुली रात होगी
आज एक रासलीला होगी
आज एक उत्सव बनेगा
आज यह अंधेरी काली रात
रात भर जागेगी
एक पल को न सोयेगी
आज की रात यह दुआ करेगी कि
कल सवेरा देर से हो और
अंधकारमय
उनके दोनों के रंग सा ही
काला हो।