अभी कर्ज़ा उताराना ज़रूरी है
अभी कर्ज़ा उताराना ज़रूरी है
अपनों का साथ हो तो दुनिया की बड़ी से बड़ी मुसीबत भी कम लगती है।सावित्री जी अपने पति की मृत्यु के बाद ठीक से गम भी नहीं मना पाई थी कि... उनके सामने घर चलाने की समस्या विकराल रूप लेकर खड़ी हो गई।
उस समय उनकी बेटी नमिता की शादी तय हो गई थी और लगभग गहने भी बनवाए जा चुके थे।तभी पति की मृत्यु के बाद उन्हें पता चला कि उन्होंने काफी सारा कर्जा ले रखा था यहां तक कि उन्होंने घर भी गिरवी रख दिया था। अब कैसे सारा कर्ज़ा चुकाया जाए....?
इधर....
पिता की अकस्मात मृत्यु के बाद सुरेश को जब पिता का व्यवसाय संभालना पड़ा तो उसे बड़ी मुश्किलें आई।उस समय उसकी उमर भी कम थी और कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर वह घर के व्यवसाय में लगा था।
तो.... उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे क्या करे....?
पिता तो बहुत सारा क़र्ज़ चढ़ाकर गए थे।तेरहवीं के बाद सावित्री जी ने अपने बेटे से कहा," बेटा! तेरी पिता तो हमें कर्ज में डूबा कर रए हैं। ऊपर से तेरी बहन की शादी भी करनी है। समझ में नहीं आता है कि पहले घर का क़र्ज़ उतारें कि के पहले नमिता की शादी करें!"l
मां की बात सुनकर सुरेश बहुत चिंतित हुआ।तभी नमिता ने आकर कहा कि...
" माँ और भाई ! अगर आप लोग बुरा ना मानें तो एक बात कहूं...
मैं अभी शादी नहीं करूंगी। बल्कि मैं कोई नौकरी कर लेती हूं। और मैं और भाई मिलकर कुछ सालों में पिताजी का लिया हुआ सारा कर्जा उतार लेते हैं । इन तीन चार सालों हम खूब मेहनत करेंगे और सारा कर्जा उतार देंगे !"
" लेकिन बेटा ! तेरी शादी विजय से तय हो चुकी है। और इन सालों में तेरी उम्र भी तो ज्यादा हो जाएगी। फिर हम कैसे तेरी शादी कर पाएंगे?
सावित्री जी ने अपनी आशंका जताई तो नमिता ने कहा,
" इन तीन चार सालों में कौन सी मेरी उम्र ज्यादा हो जाएगी....? और जरा सोच कर देखो मां! सारा कर्जा उतर जाएगा तो हमारी जिंदगी कितनी शांति से गुजरेगी!"
सावित्री जी और सुरेश ने बड़ी ही मुश्किल से नमिता की बात मान ली।
कुछ सालों में कठिन मेहनत से दोनों भाई बहनों ने मिलकर सारा क़र्ज़ उतार दिया।
अब...उनके घर में खुशियां ही खुशियां थीआखिर.... अपनों के संग से सारी समस्याएं हल हो गई थी। और जिंदगी फिर से मुस्कुरा पड़ी।
