अधूरे ख़्वाब का आसरा
अधूरे ख़्वाब का आसरा
जब सड़क की भीड़ का हिस्सा बन जाती हूँ मैं
आगे बढ़ने की दौड़ में पीछे छूट जाती हूँ मैं
तब किसी गाड़ी के पीछे खड़ा तू मुझपे मुस्कुराता है
तू मेरा अक्स है
और आईना भी
और मेरे हर अधूरे ख़्वाब का आसरा भी
जब मेरी क्यारी में कभी फूल कम खिलते हैं
फिर भी वह हर पक्षी की गिरफ़्त में होते हैं
तब किसी पंखुड़ी के पीछे खड़ा तू मुझे निहारता है
तू मेरा अक्स है
और आईना भी
और मेरे हर अधूरे ख़्वाब का आसरा भी
जब मन उच्छृंखल सा हवा के साथ बहता है
सारा जहाँ मुठ्ठी में भरने को रोम-रोम खिल उठता है
तब किसी बारिश की बूँद पर सवार तू मुझे स्थिर सा कर देता है
तू मेरा अक्स है
और आईना भी
और मेरे हर अधूरे ख़वाब का आसरा भी
जब अक्स को आईने में उतरते देखने की चाह में
कुछ अधूरा छोड़ घर जल्दी वापिस आ जाती हूँ मैं
तब तू मुझे "मैं तुम हूँ" कहकर शब्दों के तीर चलाता है
तू मेरा अक्स है
और आईना भी
और मेरे हर अधूरे ख़्वाब का आसरा भी
जब रेत पर चलते-चलते पाँव कठोर हो जाते हैं
सफ़र पूरा करने की चाह में अंगारे फूल बन जाते हैं
तब किसी ऊँट की पीठ पर बैठा तू मुझे सराहता है
तू मेरा अक्स है
और आईना भी
और मेरे हर अधूरे ख़्वाब का आसरा भी

