ग़ज़ल
ग़ज़ल
किसी को भी अपना बनाना नहीं था
हमें दिल किसी से लगाना नहीं था
वो दुश्मन जमाना ये कहने लगा है
हमें ख़्वाब कोई सजाना नहीं था
लहर जो उठी बह गया आशियाना
हमें रेत पर घर बनाना नहीं था
रहे चुप सनम और सिर को झुकाया
बनाने को कोई बहाना नहीं था
यही सोचकर हम ग़ज़ल कह रहे है
ग़ज़ल से बड़ा भी तराना नहीं था
वफ़ा का दिखाकर हँसी ख़्वाब कोई
हमें इस तरह यार भुलाना नहीं था
बहुत गम दिये है इसी जिंदगी ने
हँसाकर हमें भी रुलाना नहीं था
सुनाकर कहानी जहां हँस रहा है
धरम हाल दिल को सुनाना नहीं था।