बंद है पलके और मौन है अधर*
बंद है पलके और मौन है अधर*
रचना ,बंद है पलके और मौन है अधर* बंद है पलके और मौन है अधर अंदर ही अंदर बजता है संदल कोई न राजदार दिखता है नज़र हर घर में होता है रिश्तों का दमन कहां आएगा इस देश में अमन किसी के ग़म की किसी को ना ख़बर....!! आशा निराशा के बीच झूलते हैं सभी करके भी फरियाद होता नहीं असर फितरत सभी की बदल गई है सोच इंसानो की मर गई है डगमगाकर हम करते हैं सफर....!! किसी को कुछ भी कह नहीं सकते किसी के दुआ में नही है असर वहशी दरिंदो की कमी नहीं है क्राइम की तो यहां चलती दुकाने दो नंबर के बिजनेस में लिपटा है शहर ...!! मीनाक्षी किलावत (अनुभूती)
