ग़ज़ल--सुध बुध यहां हार बैठे
ग़ज़ल--सुध बुध यहां हार बैठे
क्यों हमारी याद में तुम सुध बुध यहां हार बैठे
प्यार में ऐसा हुआ क्या दिल यहां पर वार बैठे....!!
दे रही दुःख ये तुम्हारी आह में डूबी तन्हाई
दर्द फिर ले के तन्हाई का ही तुम बीमार बैठे...!
इश्क दरिया आग का है न लगाओ जान बाज़ी
खो सुनहरे दिन इसी में आज हम बेकार बैठे....!
नाम इज़्ज़त रूठते हैं इश्क़ की चाहत अगर हो
जानते थे फिर भी हम तो प्यार में सब हार बैठे...!
प्रेम के अक्षर हैं ढाई, बस गया उसमें जहां सब
प्रेम में देखो सिकंदर भी हुए लाचार बैठे ....!!
इश्क में ऐसे हैं डूबे जिंदगी में है तन्हाई
हम तन्हाई की तपिश में, दिल लिए बीमार बैठे...!!
बात सच्ची ही कहा करती है मीना हर ग़ज़ल में
कोई चाहे रूठ कर मुझसे ही कर तकरार बैठे...!!

