गजल - जमाने को सजाना है...
गजल - जमाने को सजाना है...
हमें ही तो बहारों से जमाने को सजाना है...!!
गुलों जैसे महकना भी हमें ही तो सिखाना है...!!
मुहब्बत हो इबादत सी तभी हरदम सजा करती
इनायत को मुहब्बत की हमें ही तो बनाना है....!!
कभी हमको हंसाती है कभी ये ही रूलाती है
खुशी या गम मिले जो भी मगर हमको निभाना है...!!
उन्हें देखा सलामी दी हुई उल्फत इबादत सी
हमें अहसास जो होता उन्हें ही तो दिखाना है.....!!
गुजर होती रहे जब इश्क से दिल में करारी हो
सनम को गर्दिशे मंजर नहीं तो दिखाना है...!!
मुहब्बत की दिले-नादां सदा तहरीर लिखते हैं
हमें भी लुत्फ मिलता है कहें जब वो सजाना है....!!
लुटा दिल और हर पल की मिली है बेकरारी भी
कहे किससे सुने किसकी इसे ही तो छुपाना है...!!

