होली आई रे सांवरिया
होली आई रे सांवरिया
ओ कान्हा रे कान्हा तुने मोरा तन- मन रँग डारा,
ऐसी मारी मोहे पिचकारी तुने,
तन सँग मन का कण-कण मोरा रँग डारा।
रंग दी प्राणों की कोरी चुनरिया
भीगे मोरे मदहोश नयना,
मन की हर धरकन भी भीगी,
वसन भीगा, भीगा मोरा प्यासा जियरवा।
प्रेम नगर की डगर ना जानूँ कितने फूल है
इसमें कितने शूल, मैं तो बस इतना ही जानूँ।
चलना है मौकों इस पे सारी उमरिया
यौवन की अलबेली बाँसुरी ऐसी बजाई,
उर -आँगन में मस्तानी-मृदु तान समाई,
अलसाते नयनों में स्वप्न की
सतरंगी लहर सी आई।
सखिया करें हँसी -ठिठोली,
छिपाए से भी ना छिपे ये,
लाख छिपाऊँ मन की ये रंगीली चोली।
रोम-रोम ऐसा रंगा तुने कहाँ सुखाऊँ
जा के ये मन-आँचल गीला,
ज़रा इतना तो बतला जा छलिया
क्यों बैठा अब मोड़ के मुखड़ा,
उलझन मेरी सुलझा जा आ के,
ना मैं तेरी राधा, ना मैं तेरी रूकमण,
मैं तो तेरी मीरा बावरिया।

