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Prem Bajaj

Romance

4  

Prem Bajaj

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तुम मुझे पीते रहो

तुम मुझे पीते रहो

2 mins
722


तेरी आगोश किसी जन्नत से कम नहीं,

तेरा सीना, खुले आसमान सा लगता है मुझे।


तेरे इन नशीले चक्षुओं में डूब कर

मैं खुद को ढूंढने की कोशिश में और भी खो गई हूं,


लिपट कर तेरे तन के पेड़ से, बोगनवेलिया की बेल सी हो गई हूं।


होंठों से जब लिखा तुमने प्यार मेरी कस्तूरी पर, 

कसमसाते हुए बिन जल मछली सी तड़प गई मैं,

समां कर तुझमें, मैं, से तुम हो गई मैं।


मेरे उर पर जो लिखा तुमने नाम अपना,

सीने की धड़कनों में बस गया वो, 


नख-शिख भीगते हुए तेरे प्यार की बारिश में,

आज बरखा से बावरी बदरी हो गई मैं।


कहां ठंडी में ठिठुरन की जगह हम दोनों के दरमियान,

आग की तरह तप रहा ये कोरा बदन मेरा,


लिखकर अपने बदन से नाम अपना अमिट छाप लगा दो सनम।


मेरे मय से भरे लबों की मय अपने शुष्क लबों से पी जाओ सनम, 

मैं बन जाऊं धरती प्यासी, तुम आसमान बन मुझ पर छा जाओ सनम।


भर दो बदन में मेरे वो सिसकती गर्म आहें सनम,

ना हो पाएं पल भर को भी जुदा हम।


इस तरह समेटो अन्दर अपने, दो नहीं एक नज़र आए हम, 

रूह भी ना हो पाए जुदा, इस कदर एक- दूजे में खो जाएं हम।


तेरे बदन की संदली खुशबू मुझे दीवाना किए जाती है, 

छूता है जब हाथ तेरा मेरे बदन को, वो अहसासे-जन्नत दिए जाता है।


तेरा प्यार कहीं जन्नत से कम तो नहीं,

मेरे गेसू भी आवारा बादल से कम नहीं।


ना कहो कुछ, मूक इशारों से प्यार दर्शाते रहो, मैं चाहती रहूं तुम्हें, तुम मुझे पीते रहो।



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