उफ़्फ ये मोहब्बत
उफ़्फ ये मोहब्बत
कैसी कशिश है तुझमें जाना, तेरे करीब रहने को जी चाहता है,
वो आग है बदन में तेरे कि इसमें जल जाने को जी चाहता है।
मोहब्बत में शरमा कर जो झूका लेती हो तुम नज़र ऐसे,
धधकता सूरज भी ढल जाए चांद की शान में जैसे।
है चांद सा गोरा बदन तुम्हारा, छूकर इसे महसूस करना चाहता हूं,
धरती बन बिछ जाओ तुम , मैं बन के गगन तुम पर छा जाना चाहता हूं।
तेरी मखमली काया पर कोई खरोंच ना आ जाए, इसलिए हौले से इसे छूना चाहता हूं,
भर कर के आगोश में तुम्हें लज्जते- इश्क देना चाहता हूं।
सादगी-ए-हुस्न तेरी क्या कहें , शीशा-ए-मय की तरह नरम हो तुम,
रखकर तेरे सीने पे सर, लिखूं लबों से अपने कस्तूरी पर तेरी जादा-ए-वफ़ा।
ना, ना आज मुझे ना रोको, होंठ रहे चुप, खोलकर पलकें उनमें बे-हिजाब इश्क भर लो तुम,
कभी मैं पीऊं तुम्हारे हुस्न को , कभी मेरा इश्क अधरों से पीओ तुम।
हटा दो पर्दा लाज का
, कुछ मैं कहूं, कुछ प्यार में मुखर हो जाओ तुम,
उफ़्फ ये स्पर्श रोम-रोम मे लगा दे अगन, मैं छा जाऊं तुझ पर,
तू मुझमें समा जा, आ इस कदर प्यार करे हम।
काश ये रात ना ढले, यूं धरती पले अम्बर के तले, मैं तुझे लगा लूं सीने से अपने,
तू लगा मुझे अपने गले, आ दोनों ठिठुरती रात में प्यार करें, निखरती चांदनी तले।
माना कि इश्क रूहानी होता है, मगर जिस्मानी इश्क बिना मोहब्बत होती नहीं,,
आ मेरे इश्क की अंगीठी में और ताप भर दे, मुझे प्यार के ज्वालमुखी से लबालब कर दे।
मैं झरना हूं इश्क का ,तू जन्नत की तहूर है, तू रति का रूप, और तेरा कामदेव मैं,
मैं हूं बरसता बादल, तू प्यासी धरती, आ तुझे पर बरस जाऊं मैं, आ तुझे प्यार करना सिखाऊं मैं।
लज्जते - इश्क ( प्रेम का आनन्द)
सादगी-ए-हुस्न ( रूप की सादगी)
शीशा-ए-मय ( शराब की कांच की सुराही)
जादा-ए-वफ़ा ( प्यार का मार्ग)
बे-हिजाब ( निर्लज्ज)