शिकवा
शिकवा
वो जो दोस्त है
उनसे यह शिकवा है
कहाँ वो पैमाना
जहाँ दोस्ती का शिकवा है
कौन कहाँ कब किस
हद से गुजर गया
दोस्तों की महफ़िल में
बस इसी का शिकवा है
उनको नहीं मालूम
यह बात है इतनी सी
हलक से उतरने पर
हर जहर रिसता है
जो फानी है उसको
फ़ना होना है एक दिन
फिर इस क़ायनात में
किससे किसको शिकवा है
आते ही जाते है ज़िंदगी में
गिरने के कई मुक़ाम्
यह अलहदा बात है
हर मुक़ाम् एक शिकवा है।

