पास भी हो, दूर भी हो
पास भी हो, दूर भी हो
हर कोशिश हुई है नाकाम जिसको भुलाने की
ऐसी भी क्या जिद्द कि ख्यालों से वो हटते नहीं
दिल के करीब होकर भी जैसे हमसे मीलों दूर थे
कभी जताया नहीं मगर नाराज़ हमसे ज़रूर थे
ऐसी भी क्या मज़बूरी थी कि वो इतने मजबूर थे
इश्क़ वह नशा है दर्द बढ़ते तो हैं मगर घटते नहीं
कल ही की बात है, चुपके से रूह में उतर गए
उनकी आहट से सीने में पुराने ज़ख़्म उभर गए
हाल बताने को उनका ख़ामोश चेहरा काफ़ी था
वक्त ने बता दिया पुराने ज़ख़्म जल्दी मिटते नहीं
क्या कहा, प्यार की नुमाइश क्या सरेआम करता
हमारे इस रिश्ते को बेवजह क्या बदनाम करता
जितना समझाया है, समझने को उतना काफ़ी था
खत में लिखा नहीं तुमने हमारे बिन पल कटते नहीं
तुम जानते हो कि ज़िन्दगी का सफ़र लम्बा सफ़र है
मुश्किलों के पहाड़ों से गुजरती इक कठिन डगर है
जितना संभलकर चलने को कहा उतना काफ़ी था
इस राह के राहगीर इतनी आसानी से पटते नहीं
सागर की लहरों को भी किनारा मिल गया होता
डुबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया होता
आँखों से हमने जो इशारा किया शायद काफ़ी था
बिजलियाँ तो चमकी मगर बादल हैं कि फटते नहीं
हाथ पकड़कर चार क़दम चलना शायद काफ़ी था
कदम जो बढ़ चले हैं कैसे बताऊँ पीछे हटते नहीं

