हर संभोग में
हर संभोग में
हर संभोग में तेरे आने की ,
तस्वीरें बनती हैं ,
फिर तुझसे मिलने को ,
ये और मचलती हैं |
दिल धड़क के बार - बार ,
तेरा ही नाम लेता ,
बंद होठों पर तेरे आने की ,
उम्मीदें जगती हैं |
मूंद पलकें जब रात में ,
हम बिखर से रहे होते ,
तब तेरे ख्यालातों की ,
जंजीरें बंधती हैं |
सुना है दो लोगों से ,
इश्क साथ नहीं होता ,
पर साथ दो लोगों के ,
एहसासों की गर्मी उभरती है |
ज़माना चाहे इसे पाप का ,
एक नाम क्यूँ ना दे दे ,
ये सच्चे प्रेम की एक ,
मिसाल बनके चमकती है |
इन कपोल - कल्पित ईच्छाओं का ,
कोई अंत नहीं यारों ,
ये ज़िस्म में नया जोश ,
और संभोग की चाह भरती है ||