चांद और दरख्त
चांद और दरख्त
जाने कितने साल ये दरख्त सुखा रहा
बस कुछ गीली यादों का सहारा रहा
और साथ रही चांद की बातें
हर रात वो चांद मुझसे मिलने आता रहा ।
कुछ किरणें चांद की मुझे भिंगोती
मेरे सूखे तन को सहलाती
निशान जो वक्त मुझ पे उकेर गया
कहानियां उन निशानों की मैं चांद से कहता गया ।
वह चांद भी तो तन्हा था
था आसमां की पनाह में
पर साथी कोई उसे भी ना मिला
दूर खड़े तारों से जो वह कह पाता नहीं
छूं कर उसकी चांदनी को
दर्द उसका मैंने पहचान लिया,
दर्द ने दर्द से रिश्ता अपना जोड़ लिया।

