किवाड़ों की ओट से झांकती यादें
किवाड़ों की ओट से झांकती यादें
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किवाड़ों की ओट से झांकती यादें
बिन दस्तक ही अंदर चली आई
ले आई थी वो कुछ लम्हे प्यार के
बिस्तर के सिरहाने लम्हे वो रख गई
और रख गई वो कुछ गर्म एहसास लिहाफों में
किसी की स्पर्श की याद भी बिछा गई।
रात भर उस अहसास ने
आलिंगन में मुझे बांधे रखा
धीमे धीमे सरकते लम्हों में
बीते लम्हों का प्यार घुलता रहा
और घुलती रही चाहत किसी की मेरे अंदर
अंदर ही अंदर कुछ दरकने लगा,
दरारों में भर गयी प्यास
और लम्हा कोई खास मुझमें जागने लगा।