मन मेरा
मन मेरा
1 min
370
और किसी की क्या बात कहूं
मन मेरा मेरी ही समझ में आता नहीं
सब कुछ तो है जीवन में मेरे
मन के सुख की परिभाषा मैं समझ पाती नहीं।
सुविधाओं से भरे घर में भी ये कमी ढूंढ लेता है
बस एक कमी पर ही ये उखड़ा उखड़ा रहता है
जी रहा है सालों से , पर जीना सीख पाया नहीं
प्रीत ही प्रीत भरा है मन में
मीत बिना जीना अब भी आया नही
मन मुझे और मैं मन को समझा पाई नहीं।