लम्हा एक गीला
लम्हा एक गीला
मेघों ने आसमान में डाला जो डेरा
यादों के बसेरे से निकल आया लम्हा एक गीला।
छम छम गिरती बारिश की बूंदे,
उतर आई आंगन में नंगे पांव ख्वाहिशें।
गीली घास पर चले मन अकेला,
होंठों पर है चुप का ताला।
भीगे हुए आंचल में मेरे,
स्वप्न है कुछ सूखे हुए।
गीली मिट्टी सा गीला एहसास,
फिर जागी है कोई अधूरी प्यास।
सीली हवाएं बहती रही,
आवाज कोई मुझे छूती रही,
जाने अनजाने फिर किसी के,
कदमों की आहट ढूंढती रही।
ढूंढती रही मैं स्पर्श किसी का,
फिर चाहूं मैं सहारा किसी कांधे का।
आलिंगन में फिर किसी के
बंध रही हूं मैं, फिर
टूटे बंधन में बंधती जा रही हूं मैं।