माना बुरा है वक्त
माना बुरा है वक्त
माना बुरा है वक्त,
पर वक्त ही तो है,
कब ठहरा है जो अब ठहर जाएगा,
पहिया वक्त का फिर घूम जाएगा।
निराशा भरी ये रात है,
है काली थोड़ी ज्यादा,
चांदनी भी नहीं आज साथ है,
पर रात ही तो है,
कब ठहरी है जो आज ठहर जाएगी।
ढल जाएगी रात ये,
सुबह नई उम्मीदों भरी आएगी।
सुख दुख का यह फेरा है,
,मौसम कोई आ के कब ठहरा है,
सुख जब ठहरता नहीं,
दुख ये कैसे ठहर जाएगा ?
मौसम ही तो है फिर बदल जाएगा।
पहिया वक्त का फिर घूम जाएगा।
ना किसी की आने से ये ठहरता है,
ना किसी की जाने से ये रुकता है,
जो आज रुक जाएगा,
जीवन है ये, गतिशील है ये,
कब ठहरा है, जो आज ठहर जाएगा।
पहिया वक्त का फिर घूम जाएगा।