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Meera Parihar

Classics

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Meera Parihar

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कहाँ गये

कहाँ गये

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महराबदार जालियाँ, आले कहाँ गये ।

दर औ दीवार घर, घरवाले कहाँ गये।।


हमने यहीं पर की थीं,अठखेलियां कभी।

गुमसुम उदास डाल कर, ताले कहाँ गये।।


बेनूर ये दरीचे, रौजन और मकां हुए ।

मेरी जिंदगी को ढाले पाले कहाँ गये।।


कुछ दूर वायीं जानिब मक़तब ये मग्मून।

कांधे पे बोझ मुस्तक़बिल, सम्भाले कहाँ गये ।।


छूटे हुए मकान में, ढूंढूं मैं नक़्शे पा ।

पग पग पे पीछे आने, वाले कहाँ गये।।


निन्यानवे के फेर ‘मीरा ‘उलझा हुआ जहां।

सौ-सौ जो कल निकाले, सम्भाले कहाँ गये ।।


दरीचे _खिड़कियां रौजन _रौशन दान

मक़तब _पाठशाला मग्मूम _उदास

मुस्तक़बिल _भविष्य नक़्शे पा_पांव के निशान

जहां _संसार


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