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Meera Parihar

Fantasy

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Meera Parihar

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पुस्तकें ज्ञान की खिड़कियां

पुस्तकें ज्ञान की खिड़कियां

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पुस्तकें प्रवेश द्वार, ज्ञान की ये खिड़कियां।।

पढ़ें लिखें बनें सुजान, लड़के और लड़कियां।।


सूर्य का प्रकाश कहे, जा रही निशा और तम।

सुबह उठो मुहुर्त ब्रह्म,समय यही है श्रेष्ठ तम।।

मन के हारे हार कहें, मन के जीते जीत सुजन।

कहें सुविज्ञ हार जीत, मन, प्रवृत्त प्रवृत्तियां


पुस्तक प्रवेश द्वार ज्ञान की यह खिड़कियां।


रहें विनम्र बड़ों समक्ष, आदर और सत्कार में।

बहस नहीं गुरु प्रत्यक्ष, संकोच न आभार में।।

 सद्ग्रंथों का करें पठन, प्रपंच, प्रवंच दूरियां।

रोक-टोक, हिदायतें,, भलाई हित झिड़कियां।।


पुस्तकें प्रवेश द्वार, ज्ञान की खिड़कियां।


सुबह-सुबह उठो, कहा बाबू जी ने प्यार से।

 चादरें तनी हैं देख, माँ खींचतीं दुलार के।।

नित्य कर्म, सूर्य अर्घ्य, प्रभु भजन, प्रार्थना।

तोड़- तोड़ कोयले, जलायीं हमने सिगड़ियां।।


पुस्तकें प्रवेश द्वार, ज्ञान की ये खिड़कियां।


कर्म पंथ है सुगम, चलें उसी पर अनवरत ।

धर्म ग्रंथ ज्ञान लिखा, ऋषि-मुनि यह नीति गत।।

अर्थ, धर्म काम, मोक्ष,रखे हुए सब जग प्रवृत्त।

निवृत्ति की तलाश, छोड़े कितने ही गृहस्थियां।


पुस्तकें प्रवेश द्वार, ज्ञान की ये खिड़कियां 


जब खिंजाएं लूट लें, वसंत की फिजा जहाँ।

 तोड़ता हो न्याय दम, न्याय की कसौटियां।।

 अधर्म, जब जड़ जमाए, धर्म के समरूप बन।

 झांकते आदर्श हों, नित दाएं- बाएं कनखियां।।


खोलती हैं पुस्तकें ही, ज्ञान की ये खिड़कियां।


 पलने लगे हों झूठ, चालें, सांच के लवादों में।

टूटते न हों तिलिस्म, रस आने लगे विवादों में।।

जीने लगे जब आदमी, पाल कर स्वप्निल भरम।

मीरा' मान ले जब हार, छुप छुप ले सिसकियां।।

खोलती हैं पुस्तकें, ज्ञान की तब खिड़कियां।।


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