माँ
माँ
संचित है मन के कोने में
माँ ममता, स्नेहिल छाया
जिनसे मिली मुझे ये काया
समझो जैसे माँ का साया
..माँ की ममता भरी पुकार
. मुनिया जा होजा तैयार
... जाकर आ बच्ची बाजार
समय गंवाना मत बेकार
सीधे रास्ते चल कर जाना
वापस घर जल्दी ही आना
सत्तू भुना भाड़ से लाना
अपनी टॉफी भी ले आना
नीचे खड़ा फालसे वाला
........देख जरा ,है कुल्फी वाला
........चने मसाला मुर्की वाला
............ले आ एक आने भर प्याला
लेकर आ पानी और तेल
चम्पी करवा ,फिर जा खेल
सखी सहेली लाली के संग
सदा बना कर रखना मेल
देकर माथे मीठा चुंबन
एक प्यारा सा वो बंधन
.......... प्रीतिसिक्त वह आलिंगन
. नीति-अनीति अनुलम्बन
कदम -कदम ले लेतीं आहट
तनिक देर पर हो घबराहट
रिश्ते में अनुपम गरमाहट
मेरे मौन पर अकुलाहट
. भरे सदा प्रीत के छकड़े
फिर भी हम रहते अकड़े
.. बात-बात पर करते झगड़े
शायद हम थे बच्चे बिगड़े
पर वह रिश्ता टूट सका न
प्रेम कभी भी छूट सका न
यादों में है वह ताजा ऐसे
अपना है कोई साया जैसे
.. कोई माँ सा दिखा ना मुझको
समझ सके जो अपना मुझको
आप नदी, धारा बन मैं बहती
'मीरा' तुममें बन इकतारा रहती
