" रूठी लगे बहार है " !!
" रूठी लगे बहार है " !!
हरे भरे हम पेड़ न काटें ,
हमें छाँह दरकार है !
हाथ जोड़ करे प्रकृति ,
हमसे यही गुहार है !!
कानन सूने सूने लगते ,
वनचर है भयभीत सभी !
नभ बादल को तरस रहे हैं ,
प्यासे , सागर ,सरित सभी !
मेघा भी बरसे तो ऐसे ,
जैसे पड़े फुहार है !!
हरियाली गुमसुम लगती है ,
मौसम थपकी देता है !
सूरज ताप बढ़ाता अपनी ,
रोज परीक्षा लेता है !
और यहाँ मानव के हाथों ,
चम चम चमके धार है !!
बड़ा प्रदूषण , घुला जहर है ,
हुई हवाएं जहरीली !
रोज उमर घटती जाती है ,
लगे हरितिका सपनीली !
धरणी भी रूठी रूठी है ,
रूठी लगे बहार है !!