" जल की महिमा " !!
" जल की महिमा " !!
जल में कुंभ कुंभ में जल है
बाहर भीतर पानी !
जल है तो जीवन है जानो
वरना खतम कहानी !
बून्द बून्द से घट भरता है
घट से बुझती प्यास !
जल से ही जीवन चलता है
जल की सबको आस !
देव पितर भी चाहें तर्पण
गुण गावें सब ज्ञानी !
सूने पनघट रीती गागर
कब आते हैं रास !
रेत के टीले मृगतृष्णा से
करते हैं उपहास !
जल बिन सब कुछ सूना सूना
सूनी सी जिंदगानी !
जल से ही सब नूर यहाँ पर
वरना क्या रखा है !
अगर ईरादे जल बदले तो
कहें हठी ठगा है !
अपव्यय को हम रोक न पाये
संचय की ना ठानी !