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बृज व्यास

Abstract

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बृज व्यास

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" जल की महिमा " !!

" जल की महिमा " !!

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जल में कुंभ कुंभ में जल है

बाहर भीतर पानी !

जल है तो जीवन है जानो

वरना खतम कहानी !


बून्द बून्द से घट भरता है

घट से बुझती प्यास !

जल से ही जीवन चलता है

जल की सबको आस !

देव पितर भी चाहें तर्पण

गुण गावें सब ज्ञानी !


सूने पनघट रीती गागर

कब आते हैं रास !

रेत के टीले मृगतृष्णा से

करते हैं उपहास !

जल बिन सब कुछ सूना सूना

सूनी सी जिंदगानी !


जल से ही सब नूर यहाँ पर

वरना क्या रखा है !

अगर ईरादे जल बदले तो

कहें हठी ठगा है !

अपव्यय को हम रोक न पाये

संचय की ना ठानी !


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