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बचपन

बचपन

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पापा के कंधों की शाही, वो सवारी ढूंढ रहा हूं।

छोटी मोटी थी गलतियां मैं, वो सारी ढूंढ रहा हूं।


नकाब पड़े है अब जिगरी मित्रों के भी चेहरों पर

आहत, बिन मतलबी बचपन की, वो यारी ढूंढ रहा हूं।


बहना अब रूठ जाती है तो मनाना पड़ता है उसको

बिन मनाए मान जाने वाली, वो तकरार हमारी ढूंढ रहा हूं।


अब मन नहीं लगता है घर पर एक दिन भी अकेले अपना

तब करते थे कामना जिनकी, छुट्टियों वो प्यारी ढूंढ रहा हूं।


हुई उम्र कमाने की अब घिरा पड़ा हूं तकलीफों के भंवर में

दुःख का काम ना था खुशियों की वो अलमारी ढूंढ रहा हूं।


इक अरसा हो गया है हमकों काम से बहाना बनाये हुए

अब स्कूल के वक़्त होती सरपेट की, वो बीमारी ढूंढ रहा हूं।


अपनी कमाई से तो घर चलाने भी है अब मुश्किल बड़ा

होती थी ऐश जिस कमाई से, पापा की वो भुखारी ढूंढ रहा हूं।


अब घर अलग हुए सबके सब जिगरी थे जो पराये हो गए

सब अपने थे जहाँ पर बचपन की, वो दुनियादारी ढूंढ रहा हूं।


अंग्रेजी भी चले है बोली में अब ले ली जगह मंहगे बस्ते ने

घर बनाये झोले ले जाते थे जहाँ वो चारदीवारी ढूंढ रहा हूं।


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