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इक सच

इक सच

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पैदा किया और सड़क किनारे छोड़ आई है

कैसी माँ है जालिम ममता का गला घोंट आई है।


कहा कुछ ने उसकी भी शायद कुछ मजबूरी है

कहा मैंने भी फिर जन्म देना भी तो कहाँ जरूरी है।


जननी है तू तेरे वजूद को गाली नहीं दे सकता

पर करनी पर भी तेरी मैं ताली नहीं दे सकता।


चल माना की तुझे भी किसी ने धोखा दिया

पर तूने भी अपनी कौख को कहाँ मौका दिया।


भला उन कुत्तों का जो उसे नोच खाते हैं

जालिम तेरी हकीकत से तो उसे बचाते हैं।


चल सोच तो सही क्या उसकी फिर जिंदगी होगी

नाजायज़ जो सुनेगा सबसे उसे भी शर्मिंदगी होगी।


तू ही सीता, तू पार्वती तू ही तो काली माई है

तेरा अंश है वो कैसे फिर उसे नाले में बहा आई है।


गर दिया है जन्म उसको तो निभाना भी जान ले

दुनिया कुछ भी कहे बस उसको अपनाना जान ले।


दुनिया, जिसने सदा तेरे वजुद को ललकारा है

इसी दुनिया की खातिर नन्हीं जान को नाकारा है।


माना आसान नहीं होगा कौन उसका बोझ झेलेगा

पर खुशी बहुत होगी जब वो तेरी बाँहों में खेलेगा।।


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