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इश्क़-ए-हकीकत

इश्क़-ए-हकीकत

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कतरा-कतरा अश्कों का हमने बहते देखा है

पानी की तड़प मछली को हमनें सहते देखा है।


जो समझते थे हवा के भरम से इश्क़ को जिंदगी

महखाने में उनको भी हमने दर्द कहते देखा है।


रातों को जागा करके जो गिना करते थे जुगनू

यादों के साये में मकान उनका ढहते देखा है।


चलते थे जो सनम के साये से लिपट कर कभी

सुनसान गलियों में उनको अकेलेपन में रहते देखा है।


ए-सनम संभल जरा ना इश्क़ निभा किसी के वादों से

कि परवानों को भी हमने इश्क़ को बेवफा कहते देखा है।।


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