बचपन की मीठी यादें
बचपन की मीठी यादें
दूर कहीं ढोल की ठुमकती हुई मधुर संगीत,
लोगों की हस्ती खिलखिलाती हुई आवाजें,
मुझे मुझसे दूर ले जाती है,
मेरे पहाड़ की खुशबू मुझे अपने पास बुलाती है।
याद आते है बचपन के वो दिन,
जब गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाते थे,
कोयल की कूक, आम के डाल में झूलना,
घूमते-घूमते थक जाए,
तो नौले का पानी पीकर मस्त हो जाते थे।
वहीं किसी के घर शादी ब्याह का माहौल होता,
तो मस्ती दोगुनी हो जाती,
खाने पीने के अलावा, संगी साथियों का इंतजार रहता,
एक पूरा गांव एक साथ एक परिवार बनकर रहता
ना किसी का डर, ना किसी का भय होता
जेब में कुछ हो ना हो दोस्तो, लेकिन अपने पास समय बहुत रहता।
अब ना वो कोयल की आवाज है,
ना सुकून की जिंदगी,
गाड़ियों के शोर में हम सिमट के रह गए हैं,
भागा दौड़ी से थके हारे से हो गए हैं
काम करके भी चैन नहीं है
मन अशांत नही, पर बेचैन भी नही है।
खुद से एक अलग ही लड़ाई है,
टेंशन का कारण अब बच्चो की पढ़ाई है।
शांति और अमन अब सिर्फ लोगो के नाम है,
शहर में अब पैसा कमाना ही एक काम है।