मां
मां
जब भी मेरी बेटी किसी आवाज से डरती है,
मुझसे आकर लिपट जाती है,
तब लगता है की मैं किसी चीज से डरती ही नहीं।
जब वो दर्द में होती है, ज़ोर ज़ोर से रोती है
तब वो मेरे गोद में आके बैठ जाती है,
तब लगता है की मुझे दर्द होता है नहीं ।
जब उसे बुखार होता है, मेरे बगैर रहती है नहीं है
हर जगह मुझे ही ढूंढती है,
तब लगता है की मुझे बीमार होना आता ही नहीं।
जब उसे चोट लगी, बिलख-बिलख के रोई,
दवा लगाते वक्त उसकी चीख सुनी,
मैने फिर भी उसको गोद में बिठाया
अच्छे से दवा लगाई, वो रोती रही
उसको देखकर लगा मुझे रोना आता ही नहीं।
ये कैसी विडंबना है?
मां हूं इसलिए मजबूत बन गई हूं ?
या मजबूत हूं इसलिए मां बन गई हूं ?
क्या मेरी बेटी की वजह से और भी
ज्यादा सुदृढ़ बनती जा रही हूं?
सच में, अब दर्द ही नहीं होता,
ना ही कोई शिकायत रहती है।
चाहे कोई भी मंजर हो,
होठों पर मुस्कान रहती है।