अदभुत नाता
अदभुत नाता
न जाने कब का ये नाता हैं,
तेरा हर भाव बहुत ही भाता हैं,
मुझमे मेरा कुछ नहीं,
जो हैं बस तुझमे ही समाता हैं,
न कुछ मैं है,
बस तू ही तू नज़र आता हैं,
मेरे रोम रोम में बस
तू ही तू मुस्काता है,
हर कण में देख तुझे,
मन दर्पण खिल जाता हैं।
न फिर कोई शब्द मुझे
तेरे लिए मिल पाता हैं,
और कुछ नहीं बस ये
अद्भुत प्रेम का नाता है।

