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Sharad Kokas

Romance

3  

Sharad Kokas

Romance

झील से प्यार करते हुए

झील से प्यार करते हुए

3 mins
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एक


झील की जुबान उग आई है

झील ने मनाही दी है अपने पास बैठने की

झील के मन में है ढेर सारी नफरत

उन कंकरों के प्रति

जो हलचल पैदा करते हैं

उसकी ज़ाती ज़िन्दगी में

झील की आँखें होती तो देखती शायद

मेरे हाथों में कलम है कंकर नहीं

 

झील के कान उग आये हैं

बातें सुनकर

पास से गुजरने वाले

आदमकद जानवरों की

मेरे और झील के बीच उपजे

नाजायज़ प्रेम से

वे ईर्ष्या करते होंगे

 

वे चाहते होंगे

कोई इल्ज़ाम मढ़ना

झील के निर्मल जल पर

झील की सतह पर जमी है

खामोशी की काई

झील नहीं जानती

मैं उसमें झाँक कर

अपना चेहरा देखना चाहता हूँ

 

बादलों के कहकहे

मेरे भीतर जन्म दे रहे हैं

एक नमकीन झील को

आश्चर्य नहीं यदि मैं एक दिन

नमक के बड़े से पहाड़ में तब्दील हो जाऊँ।

दो 

 

वेदना सी गहराने लगती है जब

शाम की परछाईयाँ

सूरज खड़ा होता है

दफ्तर की इमारत के बाहर

मुझे अंगूठा दिखाकर

भाग जाने को तत्पर

 

फाइलें दुबक जाती हैं

दराज़ों की गोद में

बरामदा नज़र आता है

कर्फ्यू लगे शहर की तरह

 

ट्यूबलाइटों के बन्द होते ही

फाइलों पर जमी उदासी

टपक पड़ती है मेरे चेहरे पर

 

झील के पानी में होती है हलचल

झील पूछती है मुझसे

मेरी उदासी का सबब

मैं कह नहीं पाता झील से

आज बॉस ने मुझे गाली दी है

 

मैं गुज़रता हूँ अपने भीत

र की अन्धी सुरंग से

बड़बड़ाता हूँ चुभने वाले स्वप्नों में

कूद पड़ता हूँ विरोध के अलाव में

शापग्रस्त यक्ष की तरह

पालता हूँ तर्जनी और अंगूठे के बीच

लिखने से उपजे फफोलों को

 

झील रात भर नदी बनकर

मेरे भीतर बहती है

मैं सुबह कविता की नाव बनाकर

छोड़ देता हूँ उसके शांत जल में

वैदिक काल से आती वर्जनाओं की हवा

झील के जल में हिलोरें पैदा करती है  

डुबो देती है मेरी कागज़ की नाव

 

झील बेबस है

मुझसे प्रेम तो करती है

लेकिन हवाओं पर उसका कोई वश नहीं है ।

तीन 

 

झील की सतह से उठने वाले बादल पर

झील ने लिखी थी कविता

मेरी उन तमाम कविताओं के एवज में

जो एक उदास दोपहरी को

झील के पास बैठकर

मैंने उसे सुनाई थीं

 

कविता में थी

झील की छटपटाहट

 

मुझे याद है झील डरती थी

मेरे तलवार जैसे हाथों से

उसने नहीं सोचा होगा

हाथ दुलरा भी सकते हैं

 

अपने आसपास

उसने बुन लिया है जाल संस्कारों का

उसने मनाही दी है अपने बारे में सोचने की

जंगल में बहने वाली हवा

एक अच्छे दोस्त की तरह

मेरे कानों में फुसफुसाते हुए गुज़र जाती है

दोस्त ! प्रेम के लिये सही दृष्टि ज़रूरी है

 

मैं झील की मनाही के बावज़ूद

सोचता हूँ उसके बारे में

और सोचता रहूंगा

उस वक़्त तक

जब तक झील

नदी बनकर नहीं बहेगी

और बग़ावत नहीं करेगी

आदिम संस्कारों के खिलाफ।

  

 

 

 


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