मैं एक कवि कवि ने खुद को ही प्रस्तुत किया है कविता के घर में पनाह माँगते हुए मैं एक कवि कवि ने खुद को ही प्रस्तुत किया है कविता के घर में पनाह माँगते हुए
शब्दों की भीड़ में मैं कवि को ढूँढ़ रही हूँ शब्दों की भीड़ में मैं कवि को ढूँढ़ रही हूँ
उसने हमसे पूछ लिया, दूसरी कविता फिर कब सुनायेंगे ? उसने हमसे पूछ लिया, दूसरी कविता फिर कब सुनायेंगे ?
एक अरसा पड़ा सींचना पर उग गयी मेरी बोई कविता, कवि ने ऐसा क्या कह डाला कि सिसक सिसक रोई कविता एक अरसा पड़ा सींचना पर उग गयी मेरी बोई कविता, कवि ने ऐसा क्या कह डाला कि सिसक ...
ज्ञान सुधा बरसा मुझ सर पर साहित्य संसार में यज्ञ करूँ। ज्ञान सुधा बरसा मुझ सर पर साहित्य संसार में यज्ञ करूँ।
तो व्यर्थ है मेरा कवि होना इन रचनाओं का कागज़ पर आकार लेना तो व्यर्थ है मेरा कवि होना इन रचनाओं का कागज़ पर आकार लेना