वाह..वाह..क्या बात है
वाह..वाह..क्या बात है


कुछ न कुछ
हम लिखते रहते हैं,
किन्हीं अवसरों पर
अपनी बातों को छंदों,
में पिरोते हैं !
कवि कहना
कवि की तोहीन होगी !
हाँ ..कभी उद्गार यूँ ही
मेरे ह्रदय से निकली होगी !
आज के युग में भला
फुर्सत है किसको ?
जो हमारी बातों को सुने,
और दिल से कहे।
वाह..वाह...क्या बात है !
आज हमने भी एक
कविता बनाई,
पढ़कर अपनी श्रीमती जी
को सुनाई !
हमारा मन रखने के लिए
उन्होंने तलियां जोर से बजाई
और वाह...वाह..क्या ..बात है ?
कहकर हमारी ढाढस बंधवाई !
फिर क्या था ?
हम गदगद हो गए
ख़ुशी से अपनी श्रीमती जी को
पांच सौ रुपये दे दिए !
वह भी बहुत खुश हुई,
और उत्सुकता पूर्वक
उसने हमसे पूछ लिया,
दूसरी कविता फिर कब सुनायेंगे ?