हिंदी का ज्ञान
हिंदी का ज्ञान
आज हिंदी ने हमारी “हिंदी” कर दी
हिंदी भाषी प्रदेश में
जन्म लिया जब हमने,
विरासत में मिली थी हमें
हमारी भाषा हिंदी।
विद्यालय का पाठ कभी न हमें कठिन लगा,
फिर क्यों आज हमें मिली इतनी बड़ी सजा,
अभिमान था हमें हमारी बोली पर
लगा मिली हमे तोहफे में
मैडम भाषा सिखाती पर हम,
सीखते "साइिंस-इिंग्लिश" थे।
कैरियर की दौड़ में,
हिंदी को न तौलते थे।
तौलते भी तो हमें गम न था,
हिंदी में हमारा ज्ञान हमें सर्वोपरि लगता था।
आज हमारे ज्ञान का घड़ा फूट गया,
अभिमान चकना-चूर हो गया,
हमेशा हम हिंदी करते पर,
आज हिंदी ने हमारी "हिंदी" कर दी
व्याख्यान सुनने हम बैठे थे,
श्रोताओं से चुप रहने का कह रहे थे।
वक्ता ने व्याख्यान शुरू किया,
सब कुछ हमारे ऊपर से गया,
तालियों की बौछार थी तो
हमने भी तालियाँ ठोकी
पर जब दस मिनिट बाद भी,
बात पकड़ न आयी थी,
हमने वहीं बात रोकी
खड़े हुए चिल्लाने लगे
तालियाँ रोक खुद मंच पर चले
बोले-"ये क्या लगा रखा है
हिंदी कार्यक्रम में कौन सी भाषा बोल रहा है
देख सभी हिंदी प्रेमी हैं, हम खुद हिंदी के ज्ञानी हैं।
चल हिंदी न सही, इस भाषा का नाम तो बता दे
कुछ नही तो हिंदी से वास्ता ही बता दे।”
सभी के चेहरे पर मुस्कान थी,
हमारी आत्मा परेशान थी,
वक्ता बोले - "हे! ज्ञानी प्रभु,”
शायद आपका ज्ञान कच्चा रह गया
हिंदी का विकास भरपूर हो गया ।
आपकी बोली भाषा नहीं
सिर्फ हिंदी का अपभ्रंश है,
आपकी भाषा पर पकड़ नही
बस यही असमंजस है।
काश! पढ़ा होता आपने
हिंदी को भी दिल से
तो आज हिंदी आपकी “हिंदी” न करती तहे दिल से..