औरतों को समझना नामुमकिन हैं
औरतों को समझना नामुमकिन हैं
औरतों को समझना नामुमकिन है
वो कहती है मेरे पास मत आओ पर
झगड़े खत्म होने के बाद चाहती है कि
तुम पास जाकर उनको मनाओ
कल की बात है मैंने बीवी से कहा,
काफी दिन हुए चलो कहीं घूमने जाते हैं
मेरा मन नहीं हैं वो ऐसा कहने लगी
सो गया तब बोली चलों घूमकर आते हैं
खुद सब कुछ सुनाती रहेंगी और कहेंगी
अरे तुम तो कुछ सुनते ही नहीं हो
सब कुछ खुद पसंद करेंगी फिर कहेगी
तुम मेरे लिए कुछ चुनते ही नहीं हो
झगड़े के आखिर में ये कहती हैं कि
मुझसे अब और कुछ कहा नहीं जाता
चुपचाप हम सुनते हैं पर कहती हैं कि
मुझसे और ज्यादा सहा नहीं जाता
हर बात में नखरे दिखाती रहती हैं
जब देखो इनका मूड बदल जाता है
अब बिन बताए कैसे समझ जाएं
कौन सा हमें पहले से ख्याल आता है
हफ्ते के पांच दिन हमारे झगड़े होते हैं
दो दिन तो मनाने में चला जाता है
फिर कहतीं है तुम वक्त नहीं निकालते
कोई मुझे बताओं वक्त कैसे निकाला जाता हैं.